कब तक सेना के बहादुर जवान हम सबको बाढ़ और तूफान से निकालते रहेंगे. कब तक हम उनकी बहादुरी के किस्सों के पीछे अपनी नाकामी को छिपाते रहेंगे. सेना, नौसेना, वायुसेना, कोस्टगार्ड और एनडीआरएफ की दर्जनों टीम न हो तो जान माल का नुकसान कितना होगा, हम अब अंदाज़ा लगा सकते हैं. उनकी तैयारी तो हमें बचा लेती है मगर नागरिक प्रशासन की क्या तैयारी है. मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, गुड़गांव, बंगलुरु सिर्फ शहर बदल रहे हैं, मगर हर साल या कुछ साल के बाद बारिश की तबाही हम सबके सामने उन्हीं सवालों को लेकर खड़ी हो जाती है. जहां पोखर हैं, तालाब हैं, नदियों के फैलाव की ज़मीन है, उन सब पर अतिक्रमण. अतिक्रमण गैर कानूनी भी और कानूनी तरीके से भी. विकास प्राधिकरण प्लॉट काट कर चले जाते हैं और जहां हम मिट्टी भर कर घर बना लेते हैं. सोचते हैं कि अब हम सुरक्षित हैं. नवंबर 2015 की चेन्नई की बारिश अगर आप भूल चुके हैं तो बताइये कि क्या गारंटी है कि आप केरल की बाढ़ को भी जल्दी नहीं भूलेंगे. यह काम आपकी मेमोरी पावर स्मृति शक्ति का नहीं है, बल्कि उस सिस्टम का है जो ऐसी तबाही से सीखता है.
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