17 जनवरी 2016 को रोहित वेमुला ने एक पत्र लिखा था. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला ने ख़ुदकुशी से पहले लिखे इस पत्र में लिखा था कि इंसान की कीमत उसकी पहचान में सिमट कर रह गई है. एक वोट हो गई है. एक संख्या हो गई है. एक चीज़ हो कर रह गई है। मेरा जन्म महज़ एक जानलेवा दुर्घटना थी. मैं बचपन के अपने अकेलपन से कभी बाहर नहीं आ सकूंगा. जिसकी किसी ने सराहना नहीं की. मैं न तो दुखी हूं और न उदास. मैं बस ख़ाली हो चुका हूं. ख़ुद से बेपरवाह हो चुका हूं. रोहित वेमुला की आत्महत्या पर देश भर में बहस हुई लेकिन उस बहस के बाद भी जाति की मार से आ रही उदासियों का दौर नहीं थमा. बल्कि हम सभी का ध्यान इस बात पर गया ही नहीं, जाता भी नहीं है कि हम जाति की पहचान को लेकर जो तंज करते हैं वो हमारी मानसिक बनावट को किस तरह प्रभावित करता है.
from Videos http://bit.ly/2HIIzBd
No comments:
Post a Comment