भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के जख्मों पर इतने वर्षों बाद भी मरहम नहीं लग सका है. घटना 1984 में हुई थी. वक्त के साथ पीड़ितों के दुख-दर्द को भुला दिया गया. दिल में जख्म लिए पीड़ित पोस्टकार्ड में अपनी तकलीफ लिखते रहते हैं, मगर इनकी उम्मीदें अब टूट चुकी हैं. लोकसभा चुनाव में कोई दल अपने मेनिफेस्टो में इन पीड़ितों के दर्द को जगह नहीं देता.
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