आप इस बात की शिकायत नहीं कर सकते हैं कि भारत में भाषण कम होते हैं. काम भले कुछ कम हो जाता हो लेकिन भाषण कभी कम नहीं होता. अब तो इसका संबंध चुनाव से भी नहीं रहा. और हो यह रहा है कि बोलते-बोलते नेता अपना सब्र खो रहे हैं. इनकी आलोचनाओं का कोई मतलब नहीं रह गया है. क्योंकि उसके बाद कुछ ऐसा बयान आ जाता है कि आप फर्क करना भूल जाते हैं कि ज़्यादा शर्म पहले आई थी या अब आनी चाहिए. लोकतंत्र के गिरते हुए स्तर के प्रति हमारी सहनशीलता बढ़ती जा रही है. नेता खुलकर सांप्रदियाक बयान दे रहे हैं या ऐसा कुछ कह रहे हैं जिससे साफ नज़र आता है कि एक संप्रदाय के प्रति नफ़रत फैलाने के लिए दिया गया है. ऐसा क्यों हो रहा है यह तो सब थोड़ा बहुत जानते समझते हैं मगर इससे नौजवानों से लेकर समाज के अन्य हिस्सों में क्या असर पड़ता होगा, हमें वोट के आगे जाकर सोचना चाहिए. मैं बात कर रहा हूं कर्नाटक से बीजेपी सांसद और मोदी सरकार के मंत्री अनंत कुमार हेगड़े के बयान की.
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