जब स्वदेशी जागरण मंच भारतीय रिज़र्व बैंक को सलाह देने लगे कि उसे क्या करना है तो इसका मतलब सही है कि भारत में ईज़ ऑफ डूईंग वाकई अच्छा हो गया है. नोटबंदी के समय नोटों की गिनती में जो लंबा वक्त लगा, रिज़र्व बैंक ने सामान्य रिपोर्ट में नोटबंदी पर दो चार लाइन लिख दी, तब किसी को नहीं लगा कि उर्जित पटेल को इस्तीफा दे देना चाहिए. बल्कि तब रिज़र्व बैंक को भी नहीं लगा कि सरकार हस्तक्षेप कर रही है. उसकी स्वायत्तता पर हमला हो रहा है. सबको उर्जित पटेल अर्जित पटेल लग रहे थे. अब उर्जित पटेल का इस्तीफा भी मांगा जा रहा है और उनके भी इस्तीफा देने की ख़बर आ रही है. सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक के बीत संतुलन होना चाहिए मगर यह संतुलन अभी क्यों डोलता नज़र आ रहा है. क्यों स्वदेशी जागरण को भी लगता है कि गवर्नर उर्जित पटेल अपने अफसरों को सार्वजिनक रुप से मतभेदों को उजागर करने से रोकें या फिर पद छोड़ दें.
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