आप लगातार देख रहे हैं आदर्श गांवों की हक़ीक़त. सरकार ने जिस चीज़ का जम कर प्रचार किया, सांसदों ने जिसके लिए मीडिया में तस्वीरें खिंचवाईं, वो चीज़ पांच साल बाद कहीं नहीं दिख रही है. हमें ऐसा एक भी गांव नहीं मिला जिसे हम सरकार के ही तय पैमानों पर आदर्श गांव कह सकें. इस कड़ी आपको दिखा रहे हैं प्रकाश जावड़ेकर के गोद लिए हुए गांव की कहानी. ये गांव मध्य प्रदेश के सतना में है- पालगांव नाम है. गांव की आबादी 5000 के क़रीब है. गांव के तीन-चौथाई लोग- यानी 75% लोग- अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग से आते हैं. प्रकाश जावड़ेकर का दावा है कि इस गांव के लिए उन्होंने 81 लाख रुपये ख़र्च किए हैं. लेकिन लोगों से बात कीजिए तो पता चलता है कि जो भी काम हुआ है, आधा-अधूरा है. दरअसल बरसों से तरह-तरह की समस्याओं से जूझते गांवों को जब सांसद गोद लेते हैं तो बस कुछ रंग रोगन, कुछ सजावटी काम पर उनकी नज़र पड़ती है. यह रंग रोगन देर तक टिकता नहीं है, सजावटी काम दम तोड़ देता है- इसके बाद वही दिखाई पड़ता है जो पालगांव में हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी देखकर आए हैं. देखिए ये रिपोर्ट.
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