Wednesday, December 26, 2018

प्राइम टाइम: सरकारी बैंकों की हालत क्यों ख़राब है?

2018 का साल आया नहीं था, कि न्यूज़ चैनलों पर 2019 को लेकर चर्चा शुरू हो गई. सर्वे दिखाए जाने लगे. काश ऐसा कोई डाटा होता कि एक साल में 2019 को लेकर कितने सर्वे आए और चैनलों पर कितने कार्यक्रम चले तो आप न्यूज़ चैनलों के कंटेंट को बहुत कुछ समझ सकते थे. एक दर्शक के रूप में देख सकते थे कि आपने 2018 में 2019 को लेकर अनगिनत कार्यक्रमों से क्या पाया. इसे न मैं बदल सकता हूं और न आप क्योंकि 2019 में आप 2019 को लेकर इतने कार्यक्रम देखने वाले हैं कि लगेगा कि काश 2020 पहले आ जाता. इन सर्वे में होता यह है कि सब कुछ डेटा बन जाता है. यूपी में कितनी सीट, बिहार में कितनी सीट. जनता के अलग-अलग मुद्दे नहीं होते हैं. पिछले एक साल के दौरान हमने पचासों प्रदर्शन कवर किए हैं, तो क्यों न हम देश भर में होने वाले प्रदर्शनों के ज़रिए 2019 के नतीजों को समझा जाए. नतीजे न सही कम से कम यही दिखे कि मौजूदा सरकार अलग-अलग तबकों के बीच किस तरह के सवाल छोड़ कर जा रही है. क्या इन सवालों का चुनाव पर क्या असर पड़ेगा. देखिए आज का प्राइम टाइम.

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