2019 के चुनावी साल में दो तरह के मुद्दों का संघर्ष होगा. जनता चाहेगी कि उसके मुद्दे पर बात हो, सरकार और विपक्ष की कोशिश होगी कि उसके मुद्दे पर बात हो. अब ये लड़ाई चलेगी. राजधानी दिल्ली से जो मुद्दे तय किए जाते हैं, उसके कवरेज़ की चिन्ता मत कीजिए, उन मुद्दों का कवरेज़ देखिए जो जनता से सीधे हम तक पहुंचते हैं. सरकारी मुद्दा चलेगा या पब्लिक का मुद्दा टिकेगा, देखेंगे, देखने का काम पब्लिक का है, दिखाना हमारा. जब मोदी सरकार आई तब संस्कृत को लेकर खूब बातें हुईं. 26 मई 2014 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्दी में शपथ ली थी तब उनके साथ सुषमा स्वराज, उमा भारती और हर्षवर्धन ने संस्कृत में शपथ ली थी. सांसद के रूप में महेश गिरी, परवेज़ साहिब सिंह वर्मा, शांता कुमार, योगी आदित्यनाथ, महेश शर्मा, राजेंद्र अग्रवाल ने संस्कृत में शपथ ली. 2017 में स्मृति ईरानी राज्य सभा का सासंद बनी थीं तो शपथ संस्कृत में ली थीं. मेसेज गया कि संस्कृत के लिए अब कुछ होने वाला है.
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